जनसंख्या की बाढ़

अभी से सोच लो कैसे कहां तुम रहने जाओगे,
बाढ़ आई जनसंख्या की, कहां फिर रहने जाओगे!

न रहने को ज़मीं होगी, न पीने को पानी होगा,
न खाने को रोटी होगी, समय कैसे गुज़ारोगे!

न तन ढकने को पट होंगे, न पढ़ने को मिले शाला,
अस्पतालों में लाइन हो, किसे दुखड़ा सुनाओगे!

घरों में भीड़ भारी हो, बज़ारों में भी हों रेले,
धुआं और शोर वाहन का, प्रदूषण करते गाएंगे।

मिले सुविधा सभी को और सब ही सुख के भागी हों,
नियंत्रण जनसंख्या पर हो, तभी ये सम्भव पाओगे।

समय रहते न जग पाए, तो फिर जगने से क्या होगा,
समय रहते सम्भल पाए तो, आगे बढ़ते जाओगे।

लीला तिवारी

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