सुभाषित 208
पापं प्रज्ञा नाशयति क्रियमाणं पुन: पुन: |
नष्ट प्रज्ञ: पापमेव नित्यमारभते नर: ||
बार बार पाप करने से मनुष्य की विवेक बुद्धी नष्ट होती है और जिसकी विवेक बुद्धी नष्ट हो चुकी हो ,ऐसा व्यक्ति हमेशा पाप ही करता है |
सुभाषित 209
पुण्यं प्रज्ञा वर्धयति क्रियमाणं पुन: पुन: |
वॄद्ध प्रज्ञ: पुण्यमेव नित्यमारभते नर: ||
बार बार पुण्य करने से मनुष्य की विवेक बुद्धी बढ़ती है और जिसकी विवेक बुद्धी हो ,ऐसा व्यक्ति हमेशा पुण्य ही करता है |